फ्रांसीसी क्रान्ति को क्रान्तियों की श्रृंखला में सबसे पहली क्रान्ति नहीं माना जा सकता किन्तु प्रभावों को दृष्टि से यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थी। फ्रांसीसी क्रान्ति फ्रांस के इतिहास की राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल एवं आमूल-चूल परिवर्तन की अवधि थी जो सन् 1789 से 1799 तक चली। पेरिस शहर में 14 जुलाई, 1789 की सुबह आतंक का माहौल व्याप्त था। सम्राट सेना को नगर में घुसने का आदेश दे चुका था। चारों और अफवाहों का बाजार गर्म था कि सम्राट सेना को नागरिकों (आम लोगों) पर गोलियाँ चलाने का आदेश देने वाला है। लगभग 7000 स्त्री-पुरुष टाउन हॉल के सामने एकत्र हुए और उन्होंने एक जन सेना का गठन करने का फैसला लिया। हथियारों की खोज करते-करते वे बहुत-से सरकारी भवनों में बल-पूर्वक प्रवेश कर गए।
अन्ततः सैकड़ों लोगों का एक विशाल जन-समूह पेरिस नगर के पूर्वी भाग की ओर बढ़ चला। भारी मात्रा में गोला बारूद मिलने की आशा में इस समूह ने बास्तील किले की जेल को तोड़ डाला। सभी कैदियों को छुड़ा लिया गया, हालांकि इन कैदियों की संख्या केवल सात थी। हथियारों पर कब्जे के लिए हुए संघर्ष में बास्तील का कमाण्डर मारा गया।
बास्तील किला सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक होने के कारण लोगों की घृणा का केंद्र बन चुका था। इसलिए किले को गिरा दिया गया और उसके अवशेष बाजार में उन लोगों को बेच दिए गए जो इस ध्वंस को एक यादगार के रूप में सैंजोकर रखना चाहते थे।
इस घटना के पश्चात् कई दिनों तक पेरिस तथा देश के 'ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में कई और संघर्ष हुए। ज्यादातर लोग पावरोटी की महँगी कीमतों का विरोध कर रहे थे। बाद में इस काल (समय) का सिंहावलोकन करते हुए इतिहासकारों ने इसे एक लंबे घटनाक्रम की ऐसी प्रारम्भिक कड़ियों के रूप में देखा जिनकी परिणति फ्रांस के सम्राट को फाँसी दिए जाने में हुई, हालांकि उस समय ज्यादातर लोगों को ऐसे परिणाम की आशा नहीं थी।
आधुनिक युग में जिन महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया उसमें फ्रांस की राज्य क्रान्ति सर्वाधिक नाटकीय और जटिल सिद्ध हुई। इस क्रान्ति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। फ्रांसीसी क्रान्ति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता को ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इस क्रान्ति ने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के विरुद्ध वातावरण तैयार किया।
अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में फ्रांसीसी समाज
बूबों राजवंश के लुई 16वें ने सन् 1774 में फ्रांस की राजगद्दी सँभाली उस समय उसकी आयु मात्र बीस वर्ष थी। उसका विवाह ऑस्ट्रिया को राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत के साथ हुआ था। उसके राज्यारोहण के समय राजकोष खाली था। काफी लंबे समय तक बले युद्ध के कारण फ्रांस के वित्तीय संसाधन पूरी तरह नष्ट हो चुके थे। वर्साय के विशाल महल और राजदरबार की मान-मर्यादा बनाए रखने की फिजूलखर्ची का बोझ अलग से था। लुई 16वें शासनकाल में फ्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को साझा शत्रु ब्रिटेन से स्वतन्त्र कराने में मदद दी थी। इस युद्ध के चलते फ्रांस पर दस अरब लिने से भी ज्यादा का ऋण और जुड़ गया जबकि उस पर पहले से ही दो अरब लिब्रे का बोझ चढ़ा हुआ था। सरकार से ऋणदाता अब 10 प्रतिशत ब्याज की माँग करने लगे थे। परिणामस्वरूप फ्रांसीसी सरकार अपने बजट का बहुत बड़ा भाग दिनोंदिन बढ़ते जा रहे ऋण को चुकाने पर विवश अपने नियमित खर्चों जैसे-सेना के रख-रखाव, राजदरवार, सरक कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने के लिए फ्रांसीसी सरकार कम बढ़ोतरी के लिए विवश हो गई पर यह उपाय भी नाकाफी था। 18वीं सक फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा था और केवल तीसरे एस्टेट के (जनसाधारण) ही कर देते थे।
वर्गों में विभाजित फ्रांसीसी समाज मध्यकालीन सामन्ती व्यवस्था का था। प्राचीन राजतन्त्र पद का प्रयोग सामान्यतः सन् 1789 से पहलो फ्रांसीसी समाज एवं सरचनाओं के लिए होता है।
प्रथम एस्टेट : इस वर्ग के अन्तर्गत चर्च के कुछ विशेष कार्य करने व व्यक्तियों का समूह आता था। इस वर्ग के लोगों को जन्म से ही कुछ कि अधिकार प्राप्त थे। उदाहरण के लिए राज्यों को दिए जाने वाले करों से छूट प्राप्त थी। हालांकि चर्च किसानों से टाइथ (Tithe) नामक धार्मिक वसूलता था। यह कर कृषि उपज के दसवें भाग के बराबर होता था। चर्च अपनी सरकार एवं कर्मचारी थे। उच्च पादरियों का जीवन भोग विलास परिपूर्ण होता था।
द्वितीय एस्टेट : इसके अन्तर्गत धनी और कुलीन वर्ग के लोग आते इन्हें राज्यों को दिए जाने वाले करों में छूट प्राप्त थी। इस वर्ग के लोगों को कुछ सामन्ती विशेषाधिकार प्राप्त थे, उदाहरण के लिए सामन्ती कर, जो किसानों से वसूल करते थे। इस वर्ग को जनता से भेंट लेने का अधिकार प्राप्त था।
तृतीय एस्टेट इन दोनों वर्गों के अतिरिक्त शेष सभी व्यक्ति तुल एस्टेट के अन्तर्गत आते थे जैसे बड़े व्यवसायी, व्यापारी, अदालती कर्मचा वकील आदि। इस वर्ग से सम्बन्धित लोगों के विशेषाधिकार सीमित थे त इन्हें राज्य को सीधे कर देना होता था। तृतीय एस्टेट के सभी सदस्यों टाइथ नामक धार्मिक कर भी देना पड़ता था। ये लोग कुलीनों को राजनीति तथा सामाजिक विकास में बाधक मानते थे।
लुई 16वें के सन् 1774 में राजगद्दी सँभालने के समय फ्रांस आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी। अव्यवस्थित अर्थव्यवस्था के कार आर्थिक स्थिति के साथ-साथ वित्तीय संसाधन भी नष्ट भ्रष्ट हो चुके। आय व्यय का कोई लेखा-जोखा नहीं रखा जाता था तथा अधिकांश धन राज परिवार के सदस्यों, कुलीनों तथा सामान्तों के भोग-विलास पर खर्च होता
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